Saturday, August 28, 2010

परिवर्तन.........


बहुत दिनों बाद मौसम खुशगवार लगता है .
हवा ने शायद करवट बदल ली होगी !!

वो जमीं के शख्स उड्ते हैं आसमानों में
शायद दो रोटी मयस्सर हो गयी होगी !!

भरी है आज फिर उडान इन पतंगो ने
शमां की लौ में शायद कुछ नमी होगी !!

गिर के उठे, उठ के चले यारॊ जब भी
छालों भरे पांवों के नीचे जमीं होगी !!

होता रहा बंट्वारा पहले भी घरों का यारो
ईंट से ईंट तो ऐसे ना कभी बजी होगी !!

बो डालें चल अब आशा के बीज जीवन में
खुशियों से कल दुनियां अपनी तो भरी होगी !!

Thursday, August 19, 2010

अब कहां जाऊं.....


सुरसा के मुंह की तरह
फैलती सडकें
किनारे पर सहमे, डरे
कटने को तैयार
बरगद ने पूछा : अब कहां जाऊं ?

सावन की ऋतु में
कभी जीवन से भरे
पत्तॊं की तरह सूखे, आज
पानी की तलाश में
भूरे बादल ने पूछा : अब कहां जाऊं ?

जेठ की तपिश में
कुऐं की मुंडेर से छ्लकती
जीवन की परछाई
कल बावडी के टूटे गिरे
पत्थर ने पूछा : अब कहां जाऊं ?

कभी लहलहाते खेतों की खुशबू
और खलिहानों में खोने का डर
आज साहूकार से बचे
एक मुठ्ठी अनाज को तरसे
खेत ने पूछा : अब कहां जाऊं ?

आज फिर शहर आया हूं
सुहाने वो बचपन के दिन
पर धुयें से घुटी और सूखी
सांसों को तरसी
हवा ने भी पूछा : अब कहां जाऊं ?