तय्यार बहुत थे हमराज बहुत थे
चोटी पर पहुँचे तो यार बहुत थे
हुई शाम जब से
याद आयी फिर
पीपल की छाया और कुल्हड़ का पानी ...
ऊँगली को थामे वो बचपन का चलना
सपनों के महलों का बनना बिगड़ना
चढ़ी धूप माथे पे
तो साये को मरहूम
पीपल की छाया और कुल्हड़ का पानी ...
जब चलना ही जीवन तो दोड़ें क्यों प्यारे
सोने को तरसे क्यों महलों के प्यारे
आँखों मैं मोती
पर पानी को ढूँढे
पीपल की छाया और कुल्हड़ का पानी ...
हैदराबाद : १०-०८-२०१६
daju too good,man ko chu gaye aapke shabd,kavi ko salam.
ReplyDeletedaju too good,man ko chu gaye aapke shabd,kavi ko salam.
ReplyDeleteधन्यवाद रजनी कभी कभार यूँ ही भाव शब्द बनकर उतर आते हैं..
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